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Sunday, September 4, 2011

बदलता बनारस !!!!!!!!!!!!!

इस पूरे सप्ताह बनारस शहर को एक प्रोफेसनल तरीके से देखने और और उसका अनाल्सिस करने का मौका मिला / आज लग रहा था की यह कभी धर्मिक नगरी कही जाने वाली यह बनारस शहर, बड़े बड़े महानगरो की चका चौंध में काशी नगरी कही विलुप्त होने सी लगी है / आज पूरे पूर्वांचल के लिए बड़ा बाज़ार बन गया है, लोंगो की बढती परचेजिंग पॉवर बड़े बड़े ब्रांड को  tier ३ शहरों में एक बड़ा बाज़ार बना रहा है/ आज बढ़ता  माल कल्चर बड़े बड़े ब्रांड अपने को स्थापित करने में सहायक हो रहे है/ लोंगो की भीड़ से आज पूरा बाज़ार ढका सा रहता है , इस भीड़ को देखकर सभी ब्रांड के सेल्स मेनेजर अपने नए नए टार्गेट सेट कर रहे है और लगातार उसे अचीव भी करते नज़र आ रहे है / आज पूरे शहर में adidas , liliput , liberty , mochi , levis , etc , अपने पैर पसार रहे है/ आज पुराने सिनेमा हाल जैसे - नटराज , टकसाल , विजया , अभय , कन्हिया चित्र मंदिर , मजदा , आनंद मंदिर ,, या तो बंद हो चुके है या बंद होने की कगार पर है, उनकी जगह multiplex  ने ले लिया है, आज लोग ३० - ३५ रुपये की जगह लोग १०० - १५० रुपये में multiplex जाना कही अच्छा  समझने लगे है या status मेंटेन करने लगे है / 
आज इन माल culture में पुरानी गोदौलिया, नयी सड़क , चौक , मैदागिन की मार्केट कही छोटी नज़र आती है ,, आज काशी की "अड़ी"  कही नज़र नहीं आती , आज "पक्के  महाल " , "दसस्वमेघ घाट " , चौक , "भैरव गली", अस्सी घाट के चाय की दुकानों पर लगने वाली "अड़ी" कही गुम सी होने लगी है, आज यहाँ पुराने मकानों की जगह बड़ी बड़ी बिल्डिंग्स ने ले लिया है/ धीरे धीरे सारा शहर चार पहिया बहनों से ढका सा जा रहा है, लोग लोन लेना अब बुरा नहीं समझते , आज यहाँ हर दूकान पर क्रेडिट कार्ड से पेमेंट आप्शन भी है.. लोग धीरे - धीरे ही सही मेट्रो सिटी का अनुभव सा करने लगे है / लेकिन डर ये है कही बनारस की परंपरा कही इन् मेट्रो सिटी बनाने में खत्म ना होने लगे ... कही सुबह - ए -  बनारस की शुरुआत  कचौड़ी - जलेबी की जगह पिज्जा और बर्गर से ना होने लगे .................... 

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